Friday, September 24, 2010

आवाजो का खेल

(((((((((आवाजो का खेल))))))))))

सड़क से निकलते हर टोलियों के पास अलग-अलग तराह की toun का साऊड़ अपने-अपने अंदाज मे गुंजता है चंदा मागने वाले अपनी ताल मे थपकी मारते हुए उस जगह को अपने ही साऊड़ के रंग मे रंगने लगते है
हर साऊड़ का अपना-अपना एक खेल है कोई उनको मेहसूस करने पर ही मस्त हो जाता है और कोई सुनने पर भी कानों में उंगली डाल लेता है बटन दबाने पर टिक-टेक, टिक-टेक, टिक-टेक, की आवाज तो होती ही है और वो उस आवाज से दुसरी आ‍वाज को अपना सन्देस भेजती है कि मुझे किसी ने टिक-टेक किया है और उसी साऊड़ को सुनके हमारा बोलना याद अब कोन आ गया फिर वो ही आवाजो का सिलसिला.....
पत्तो` कि हर खन्क मे छन-छन करते एक नया ही महोल तईयार कर देते है दुसरी तरफ गाड़ी का तेज साऊड़ उसे अन सुना कर देता है और वो अपने मे ही खनकते रहते है
हर महोल आवाजो से खेलता रहता है कोई कुछ बोल कर तो कोई हरकत करके आवाजो को अपने आप से ही बुन कर सन्नाटे को खत्म कर देता है और चप रह कर भी बहुत कुछ बोल जाता है
आवाजो से खेलना सिखना है तो बनते महोल से सीखे हर आवाज को अपनी चपट मे लेकर चलता है बनते बनते एक नई आवाज कब बन जाती है पता सा ही नही चलता...
लोगों के उस जमघट से एक नया साऊड़ इफेक्ट तईयार होता है जाता है आवाज की हाई लो पिच साउड़ को एक नया आकार देती है कभी पास से जाती कार की आवाज जब दुर चली जाती है तो लगता है speed को एक fade out effcet सुनाई देता है
हर साऊड़ का बनना अलग-अलग रुप मे सामने आता है किसी का कुछ तोड़ना,किसी का कुछ बनाना, किसी का बजाना,किसी का कुछ चलाना ....
सब अपने अपने ढंग से आवाजो को बनाने मे लगे है किसी का कुछ कंट्रोल है तो किसी का नही।