Monday, January 24, 2011
Sunday, January 16, 2011
एक जगह
एक जगह
इस लोकेलिटी मे बेठने कि वेसे तो काफी जगह है लोग यहा पर आकर बैठते है वजह चाहे कुछ भी हो बस जगह मिल जाय कही पसर कि।वही अपना डेरा जमा लेते है सड़क पर घरो के सामने बना चोतरा गली के बहार का कोना या बिच का चौहराया ये जो सड़क है हमारी ये जे-के ब्लोक से जानी जाती है इस सड़क पर कही भी देखलो लोग या बच्चो कि टोलिया देखने को मिलती है सड़क के किनारे ही वो अपनी गपशप कर लेते है ओर लोकेलिटी मे एक एसी जगह लोगो को मिलि है जहा आकर आराम से बेठ कर एक दुसरे से बाते घढते है इस को एक दो या तीन साल हो चुके है बने हुए एक लोहे का बेन्च रखा है दुसरी बेन्च पत्थरो से ही बना हुआ है साइड मे एक खौका बना है यहा लोग अपना जरुरतमंद समान लेते है उपर लकडियो का जाल बना रखा है उसमे तरपाल लगी है उसमे ही एक जगहा यानी बिच मे ही एक पेड़ है उस जगह वो छाया देता है लोग आदमी,बच्चे,बुढे,औरत यहा आकर बैठ जाती है कभी इलेक्शन का दोर आता है तो इलेक्श कि टोलिया इस जगह पर नज़र आती है उस जगह को अपने चुनाव चीन से बने झन्डे को वहा पर लगा देत है कुछ बोर होते है तो ताश के पत्ते खैलकर अपनी बोरीयत को दुर भगाते है कुछ अपने बच्चो को लेकर आजाते है पेड़ कि हवा खिलाने तो कोइ अपनी थकावट को दुर करने आते है बच्चो कि टोलिया आ जाए तो अपनी हंसी मजाक करती रहती है सामने से सड़क कि ओर से कोइ आय तो उसे भी अपनी जगह दे कर उसे इस जगह मे सामिल कर लेते है सड़क मे तो चेहल पेहल कि आवाजे आती ही रहती है सड़क से जाती गाडिया उस जगह पर अपनी आवाजे छोड जात है सड़क के बगल मे जो दुकाने है उनकि नजरे भी इसी पर पड़ती रहती है सुबहा सुरज कि रोसनी पेड़ के पत्तो से छन कर आती है।लोगो का इस जगह से कुछ गेहरा सा रिस्ता हो गया है
मैने भी इस जगह पर अब अपना वक्त गुजारना सुरु किया है पहेले नही जाता था अब उस जगह से कुछ सुरुवात कर रहा हुँ अब वहा पर जाकर बैठता हुँ तो लोग का पता चलता है उस जगह से लोगो का बैठ कर बत्लाना कुछ आदमीयो का ग्रुप आता है ओर तास के पत्ते लेकर मग्न हो जाता तेज तेज आवाजो मे बोलते है दुग्गी या तीग्गी उस वक्त आवाजो से उस जगह मे लोग खीचे चले आते है उने भी अपने खेल मे मग्न कर लेते है लाइट चली जाने के बाद तो जेसे वो जगह हाउसफुल हो जाती है लोग अपनी अपनी मंडलिया लेकर वही पहुच जाते है बस सुबहा होने कि देर उस जगह पर डेरा लगाना सुरु कर देते है अखबार लेकर पढना खोके से कुछ भी लेकर वही बैठ जाते है मेने एक आदमी से बात कि वो उसी जगह के सामने उसकी एक कबाडी वाले कि दुकान है वो उस जगह से जादा से जादा वाकिव है
"उसने कहा" यहा यहा लोगो का जमघत ही रहता है जिसका मन जब भी करता है वो वहा जाकर बैठ जाता है मै कभी देखु इस जगह को कोइ ना कोइ तो मिलता ही है वो उस दुकान मे कुछ समय से काम कर रहा है
"उन्होने कहा" के कभी कभी तो मै खूद भी उस जगह पर जाकर बैठ जाता हुँ कुछ देर बैठता हुँ फिर अपनी दुकान मै वापस आ जाता हुँ मेरी नजरे जब भी बहार जाती है सबसे पहले इस जगह को देखती है जब लाइट चली जाय तो लोगो कि यहा पर लाइन लग जाती है आपस मे ही बातचीत करके इस जगह को अपनी किलकेरियो से गुंजा देते है इतना अच्छा स्पेस मिला है बैठने का तो वो क्यो ना मौज मस्ती करे यह जगह घर से जादा दुर भी नही है एक सुन्दर गार्डन कि तरहा है घर से चाय ले कर आ जाते है और इस पर आ कर चुस्कीया मारते रहते है कुछ चाय वाले को यही बुला लेते है यहा आस पास के दुकान से कुछ खाने का ले लेते है चाय मे डुबो डुबो कर खाते है ओर जब महोल मे बातो कि तेजी होती है तो बातो बातो मे किसी भी बात पर चर्चा होने लगती है उस चर्चा मे बाकी लोग भी शमिल हो जाते है उस चर्चा कि आवाजे ओर लोगो तक भी पहुच जाती है के इस जगह मे लोगो ने क्या चर्चा कि है लोगो कि ये जगह बहुत खास सी बन गइ है लोग यह से उठना भी पसन्द नही करते इस जगह से घुल मिल से गए है इस जगह का एहसास इस जगह कि लगन उन्हे यह खीच ही लाती है सड़क के साईड मे जो इस का निमार्ण हो गया है सड़क से गुजरते हर शक्स कि नजरे इस जगह को देखती गुजरती है दोपहर कि तेज तपत घुप से लोगो को बचाने के लिए पेड़ कि चलती हवा पसीने का जैसे तो ले भागती है और इस जगह को ताजा रखती है मेने सोचा है इस जगह पर इतना लोगो का जुडाऔ है लोग यहा पर अपनी मस्ती मे खो जाते है अपने बिच का ब्योरा देते है RAJA
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